भावना तेरी तो हैं मेरी नहीं।
अपडेट करने की तारीख: 23 मई 2021
"भावना तेरी तो हैं मेरी नहीं।
मेरा चलना चलना नहीं, तेरा जगह बदल लेना चर्चा बन जाता हैं ,
ये जो गांव के करीब नदी की लहर हैं, ये हमारी मिट्टी काटे तो कोई नहीं ,
तेरा तिनका भी झोपडी का हिले तो चर्चा बन जाता हैं.
भावना तेरी तो हैं मेरी नहीं।
मेरा दोस्त यार नहीं, तेरा बिका दोस्त, भी दोस्त बन जाता हैं.
हम बैठे ठंड में, तो कौन, तेरा अलावा जला कर हमको चिड़ाना बन जाता हैं.
हम खाये अपनी बोई रोटी, तो कोई नहीं।
तेरी मशरूम दूसरे मुल्क से आये तो चर्चा बन बन जाता हैं.
कोई नहीं, कोई नहीं।
बैठे हैं हम देख ले, ज़िद्दी हैं हम, कर मुकाबला, देखते हैं चर्चा तू बने या हम.
भावना तेरी तो हैं मेरी नहीं।"
लेखक
इज़हार आलम देहलवी
writerdelhiwala.com
