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श्रदांजलि . गलवान के वीर सपूतो को


"जब आँख खुले तो धरती हिन्दुस्तान की हो 

जब आँख बंद हो तो यादेँ हिन्दुस्तान की हो 

हम मर भी जाए तो कोई गम नही लेकिन

मरते वक्त मिट्टी हिन्दुस्तान की हो"

श्रदांजलि. हम मर भी जाए तो कोई गम नही लेकिन मरते वक्त मिट्टी हिन्दुस्तान की हो

चील आंटी बोहोत खुश थी सभी अपने अपने कामों में बिज़ी थे पर न जाने ये ख़ुशी कब तक सलामत रहती।  सभी एक दूसरे से बाते बतिया रहे थे  खुश थे। के तभी चील आंटी को कुछ दिखाई दिया कुछ अजीब अजीब आवाज़ सुनाई दे रही थी चील आंटी की मुस्करात हसीं धीरे धीरे गायब होती गई।  पास बैठी गुररया ने आंटी से पूछा " क्या हुआ आंटी आज तो मौसम भी खुशगवार हैं सूरज भी ज्यादा नहीं दमक रहा हवा भी नाम हैं ऐसा क्या  हो गया। क्या देख लिया या सुन लिया जो मुस्कराहट एकदम ख़त्म हो गई"- चील दूर से आती अवाज़ो को सुनती रही। कुछ नहीं बोली। कुछ समय बाद एक एक कर सभी चील की तरफ मुखातिब होते गए. ऐसा क्या हो गया जो चील आंटी खामोश हो गई। इधर चील के आँसूओ गिरने लगे। वो सब आंसुओ को टप टप गिरते देखते रहे. अब किसी की भी हिम्मत नहीं हो रही थी के चील आंटी से कोई सवाल करे। ऐसे में उस पेड़ पर एक सरस आ कर रुका। बैठते ही अपनी चिर परिचित अंदाज़ में बोला - "क्या हाल हैं मेरे दोस्तों आज का सफर बड़ा सुहाना था मौसम ने बोहोत साथ दिया जून जैसे महीने में जहा इतनी गर्मी होती हैं लू हवाओ की जगह बहती हैं सूरज भी सुर्ख हो जाता हैं। " इतना ही कहा था के उसकी समझ में आ गया के कुछ प्रॉब्लम हुइ हैं यहाँ कुछ तो गड बढ़ हैं।इसके बारे में कौन बताएगा उसने गर्दन इधर उधर घुमाई तो चिड़ियाँ ने अपने हाथ से चील आंटी की तरफ इसरा कर दिया सारस ने चील आंटी की की तरफ मुखतिब हो कर सवाल कर लिया। "मेडम चील क्या बात हैं आज आपके आँखों में ये आंसू कैसे हैं। क्या हुआ जो सब चुप बैठे हैं यहाँ तो हर समय पार्टी जैसा माहोल रहता हैं। आज क्या हुआ "- चील आंटी ने गर्दन बिना घुमाएं बोला -"आज देश की सम्प्रभुरता खतरे में था "और चुप हो गई .आंसू सरस के पंखो पर गिरने लगे। सारस ने फिर सवाल किया - "पर किससे ख़तरे में हैं? " - चील ने फिर बिना गर्दन घुमाए जवाब दिया -"आज अपने पड़ोस जो उत्तरी लद्दाख से मिला हुआ हैं उसने हमारी जमीन गलवान वेल्ली  पर कब्जा करने की कोशिश जारी थी. जिसको हटाने हमारी फौज के 70 जाबांज़ जवान वार्तालाप करने वह गए थे वापस जाओ पर उन्होंने बातो को न मानकर उनपर नोकीले सरीओ से हमला कर दिया " - और चील आंटी चुप हो गई।         अब बारी थी हसमुख की "ऐसा क्या हुआ वह जो आपकी आंख से पानी नहीं रुक रहा और आप इतनी ग़मगीन हो गई। " चिल ने हसमुख की तरफ देखा अपने पंखों से अपनी आँखों को पोछा जिस में लगातार आंसूबहे जा रहे थे. जो अब भी रुकने का नाम नहीं थे। " हसमुख आज हमारे 20 जवान शहीद हो गए "- ये सुन सभी चौक गए।  एक दूसरे को देखने लगे उनकी समझ में नहीं आ रह था के क्या बोले जबान एक डैम सील गई थी।  सभी खामोश हो चुके थे। सारस ने चुप्पी तोड़ते हुए पूछा "चील क्या हुआ क्या देखा तुमने क्या सुना तुमने जरा हम को भी बताओ, हमको भी सुनाओ". चील ने लम्बी आह लेते हुए एक लम्बा सास खींचा। " मुझे मेरे दोस्त ने अपनी आँख में जो दिखाया वो बोहोत दुःख और दर्द से भरा था उसमें हमारे जवान अपनी जमीन को खली करने वहा गए थे. उनसे बात चीत में तय हुई बात के मुताबिक वापस जाने को कहा था। दोनों देश के अधिकारिओ की बैठक में वापस हटने को राज़ी हुए थे। पर वो उसका पालन करने को तैयार नहीं थे. वो वहां से हटना नहीं चाहते थे। छल कपट उनमें भरा पड़ा हैं। उनका मकसद 1961 की तरह हमारी जमीन को हड़पना था। " फिर क्या हुआ वहां क्या हुआ क्या देखा "- सारस ने चील के चुप होने पर फिर सवाल कर लिया था। - चील ने फिर बताया। "हमारे जवान उनसे अपना सामन बांध कर वहां से चलने जाने को कहा तो वो झगड़ा करने पर उतारू हो गए. उन्होंने हमले की पहले से तैयारी कर राखी थी। उन्होंने चारो और से उनपर पत्थर नुकीले सरिये जिन पर तार लिपटे हुए थे लोहे के नुकीले तीर लगे पाइपों से हमला कर दिया जब तक हमारे जवान समझ पाते  कोई रिक्सन कर पते हमारे तीन जवान घंभीर जख्मी हो गए। जिसमें एक कर्नल रेंक के आर्मी ऑफिसर कर्नल संतोष बाबू जो तेलंगाना के रहने वाले थे उनके साथ २ और जवान जो तमिलनाडु के हवलदार पिलानी और झारखंड के सिपाही ओझा थे(16वीं बिहार रेजीमेंट) उन्होंने वही सहादत हासिल की " और ये कहे कर चील फिर से चुप हो गई और अपने आंसुओ को रोकने का पुर जोर कोशिश करती रही पर आंसूं रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे। तोते मिया ने शांति को भांग करते हुए पूछ लिया -" फिर क्या हुआ सब ठीक हो गया चीनी हट गया वहा से". -                   " नहीं अगर बात यही ख़त्म हो जाती तो भी बेहतर होता जो मंजर मेने उसकी आँखों में देखा वो ज्यादा दुख दाई था" "क्या हुआ वहा"- " जब तक हमारे सैनिक खतरे को भापते तब तक हमारे ज़्यदातर सैनिक उन नुकीले पथरो से घायल हो हो चुके थे। इस बीच उन्होंने भी मुख़ब्ला किया पर वो एक ढलान से कुछ सिपाही निचे की तरफ गलवान नदी में जा गिरे जहा 0 से 50 डिग्री से निचे की ठन्डे पानी में भीग गए जब तक उनके पास तक मदद पहुंचती वो मूर्छित हो गए. गलवान वेल्ली में हाथा-पाई ज्यादा खतरनाक होती चली गई चीन के सिपाही भी घायल हुए और मारे भी गए पर हमारे 50 से 70 जवान घायल हो चुके थे. जब तक मदद पहुंची तकरीबन २० सिपाही शहीद हो चुके थे। इन सिपाहीओं के शरीर हाइपरथर्मिया का शिकार हो चुके थे। कुछ जख्मी थे कुछ वही शहीद हो चुके थे. ये मंज़र बड़ा भयावक था। में इतनी विचलित हो गीई के मैं पूरा वाक़य नहीं देख पाई. अब भी मेरे कानो में उनकी आवाज गूंज रही हैं. उन तस्वीरो से मैं स्तब्ध हो गई हूँ".  - अब तक सभी के आँखों से आंसू बह रहे थे।               हसमुख ने सभी को ढाढंस बंधाया और बोला - "दोस्तों हमारे जवान देश के खातिर शहीद हुए हैं उनके लिए हम आँसू न बहाएं, दुआ करे, उनकी आत्मा लिए. वो शहीद हैं उनपर रोना नहीं।  गर्व होना चाहिए के हमारी जमीन से ऐसे वीर सपूत पैदा होते हैं जो अपनी मिटटी के लिए जान की भी परवाह नहीं करते। ऐसे वीर सपूतो को हम सभी को सलूट करना चाहिए और उनके परिवार वालो का दर्द बाटने की कोशिश करना चाहियें। उनके परिवार जख़्म पर हम अपनी हमदर्दी का मलहम लगाने की कोशिश तो कर ही सकते। उन्होंने हमारे लिए शाहदत दी हैं।अपने वतन की हिफाज़त के लिए अपनी पराणो की आहुति दी हैं हम सब को २ मिनट का मोन रख कर श्रदांजलि दे ये हमारा फ़र्ज़ हैं। जो जिस धर्म को मानने वलकिउ न हो देश भक्ति से बड़ा कोई धर्म नहीं हैं हम मिलकर अपने अपने धर्म मुताबिक शाहदत देने वालो के लिए प्राथना हैं।

             20 जवानों की जान गई है. 1975 के बाद ऐसा पहली बार हुआ है, जब भारत और चीन के जवानों के बीच कोई हिंसक झड़प हुई हो. हम शांति चाहतेहैं पर अगर कोई हमको ललकारने की गलती करेगा  हम उसका पीछा उसके घर तक करेंगे और वही घुस कर मारेंगे। हम एक एक दस दस के बराबर हैं हमारा एक जवान दुश्मन के 10 जवानो पर भरी होगा।              हम बौद्ध के मानने वाले हैं हम शान्ति के पुजारी हैं हम युद्ध नहीं चाहते पर कोई हमरी और गलत आँख उठाएगा उसकी आँख भी निकलना जानते हैं। हमारा इसका फायदा न उठाये हम शांति के साथ जीते हैं अपने पड़ोस भी शांति ही चाहते हैं. 


"चिंगारी आजादी की सुलगी मेरे जश्न में हैं इन्कलाब की ज्वालाएं लिपटी मेरे बदन में हैं मौत जहाँ जन्नत हो ये बात मेरे वतन में हैं  कुर्बानी का जज्बा जिन्दा मेरे कफन में हैं" लेखक / आर्टिस्ट  इज़हार आलम dehelvi (writerdelhiwala.com )

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