"जीवन बिन तेरे नहीं "


पेड़ो पर मेरी कविता
"जीवन बिन तेरे नहीं "
जहाँ जीवन की सुबह हम जाने।
जहाँ हरा भरा जीवन मेरा।
जहाँ रंग बिरंगी सुबह हैं। जहा बदलो की घटा हैं।
जहा मचलती फ़िज़ा हैं।
जहाँ सुबहो का संगीत हैं।
जहाँ लहराती हवा हैं।
जहाँ बूंदों की टप-टप हैं ।
जहा शाम का संगीत हैं ।
जहाँ हरे हरे, पिले पिले रंग बिरंगे पत्ते हैं ।
जहाँ फूलो की महक,
जहाँ चन्दन की महक
जहाँ जीवन की सुबह हम जाने।
जहाँ हरा भरा जीवन मेरा।
जहाँ बुलबुल की चहक हैं।
जहाँ हवाओ में नृत्य करते पंछी हैं।
जहाँ ऐसे पेड़ हैं ।
जहाँ जीवन की सुबह हम जाने।
जहाँ हरा भरा जीवन मेरा।
जहाँ मिलेगा जीवन, जियेगा जीवन जहाँ जीना हैं ।
हम जाये वहां।
जहाँ इस डाल कूदू, उस डाल कूदू ।
इस कलि को छू लूँ, उस कलि को देखूं।
इस फूल की महक , उस फूल की महक जहाँ जीवन की सुबह जीवन जाने।
जहा हरा भरा जीवन मेरा।
चलो यू चले उस संसार में जहा हो पंछिओं का घर।
लो छो लिया तुमको! अब ! पंछी बन मैं गगन में उड़ा जाता हूँ।
उस संसार में चला जाता हूँ।
मन में ख़ुशी लिए मैं चाहा कर उड़ता जाऊं .
मैं गगन में उन पंछीओ के साथ जो प्रवासी हैं..
आते जाते छू लेते हैं मेरे मन को ।
जैसे सुबह की लाली छुए जीवन को।
जहाँ जीवन की सुबह हम जाने।
जहाँ हरा भरा जीवन मेरा।
लेखक इज़हार आलम DEHELVI
( writerdelhiwala)